
रायपुर. ‘इस प्रकरण में विवेचना समय से ही विवेचना कार्यवाही निम्न स्तर की रही है. विवेचना कार्यवाही के दौरान अभियोजन ने यह स्थापित नहीं किया है कि मृतका मीना खलखो की हत्या आरोपीगण को आबंटित शस्त्र एंव उन्हें प्रदत्त गोली के लगने से हुई है. अभियोजन ने मात्र साक्षियों की संख्या को अधिक दर्शाया है, परंतु विवेचना के दौरान कथित अपराध से संबंधित तथ्यों को स्थापित करने में वह पूर्णत: असफल रहा है. अभियोजन की लापरवाही के कारण इस प्रकरण में साक्ष्य का पूर्णत: आभाव रहा है, जिससे अभियुक्त संदेह के घेरे में आने पर भी दोषसिद्धि की ओर नहीं जा पा रहे हैं. क्योंकि संदेह कितना भी गहरा हो, वह साक्ष्य का स्थान कभी नहीं ले सकता.’ छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित मीना खलखो हत्याकांड में रायपुर जिला कोर्ट की द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश शोभना कोष्टा ने अपने फैसले में ये अहम टिप्पणी की है.
6 जुलाई 2011 को छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में 16 साल की लड़की मीना खलखो की बेरहमी से हत्या मामले में आरोपी पुलिस वालों को बरी कर दिया गया है. रायपुर के एक स्थानीय कोर्ट ने 5 अप्रैल 2022 को इस मामले में अपना फैसला सुनाया, जिसके आदेश की कॉपी मई के तीसरे सप्ताह में सार्वजनिक हुई है. मामले में दोष मुक्त करार दिए गये हरियाणा के रहने वाले धर्मदत्त धानिया इन दिनों एनएसजी, गुड़गांव में तैनात हैं. दूसरे आरोपी जीवनलाल रत्नाकर, प्रधान आरक्षक रामानुजगंज में कार्यरत हैं. एक अन्य आरोपी तत्कालीन थाना प्रभारी निकोदिम खेस की पहले ही मौत हो चुकी है.
क्या है मीना खलखो हत्याकांड मामला?
7 जुलाई 2011 को तत्कालीन सरगुजा वर्तमान में बलरामपुर जिले के चांदो पुलिस थाना क्षेत्र में करचा गांव के पास नक्सलियों से कथित मुठभेड़ का दावा पुलिस वालों ने किया. इस मुठभेड़ में 16 साल की लड़की मीना खलखो के गंभीर घायल होने के बाद मौत होना बतया गया. पुलिस ने मीना के संबंध नक्सलियों से होने का दावा किया, लेकिन मीना के परिजन इस दावे को झूठा बताया. मामले में संसद से लेकर विधानसभा तक खूब हल्ला मचा. तत्कालीन भाजपा सरकार की खूब किरकिरी हुई. इसके बाद सरकार ने मीना खलखो के परिवार वालों को मुआवजा और एक सदस्य को नौकरी दी. साथ ही एकल सदस्य न्यायिक जांच आयोग का गठन भी किया.
अनिता झा की न्यायिक जांच आयोग ने लगभग 4 साल बाद साल 2015 में अपनी जांच रिपोर्ट दी. आयोग ने अपनी जांच में पाया कि मीना की मौत पुलिस वालों की गोली लगने से हुई थी. आयोग ने नक्सलियों से मुठभेड़ का दावा भी फर्जी पाया था. आयोग की रिपोर्ट को आधार पर तब राज्य की बीजेपी सरकार ने सीआईडी को जांच का जिम्मा सौंपा. आईपीएस नेहा चंपावत के नेतृत्व में जांच टीम गठित की गई. सीआईडी ने अपनी विवेचना में पाया कि मीना खलखो की मौत आरक्षक धर्मदत्त धानिया और आरक्षक जीवनलाल रत्नाकर की गोली से की गई है. तत्कालीन चांदो थाना प्रभारी निकोदिम खेस ने हत्या के साक्ष्य छुपाए थे. तीनों ही पुलिस वालों के खिलाफ नामजद जुर्म दर्ज किया गया. इस मामले में कुल 11 पुलिस वालों पर हत्या और 14 के खिलाफ हत्या में सहयोग का जुर्म दर्ज किया. लेकिन साक्ष्य कोर्ट में पेश नहीं कर पाई. इसके चलते कोर्ट ने सभी पुलिस वालों को बरी कर दिया है.
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Tags: Chhattisgarh news, Raipur news
FIRST PUBLISHED : May 18, 2022, 09:37 IST
