पुरानी बस्ती में टुरी हटरी का ऐतिहासिक मंदिर
राजधानी का सबसे पुराना जगन्नाथ मंदिर पुरानी बस्ती के टुरी हटरी इलाके में हैं। मठ के महंत रामसुंदरदास बताते हैं कि यह लगभग 500 साल पुराना मंदिर है।इन दिनों भगवान अस्वस्थ हैं और काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जा रही है। किसी मंदिर में पंचमी, कहीं नवमीं और कहीं एकादशी तिथि पर काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जाएगी।

भगवान को रथयात्रा पर विराजित करके गुंडिचा मंदिर ले जाने की परंपरा निभाएंगे। भगवान 10 दिनों तक अपनी मौसी के घर विश्राम करेंगे। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान को वापस रथ पर विराजित करके मंदिर लाकर प्रतिष्ठापित किया जाएगा। इसे बहुड़ा रथयात्रा कहते हैं।
12 साल में नया रथ
पुरी धाम में जिस तरह प्रत्येक 12 साल बाद भगवान के श्रीविग्रह को बदलने की परंपरा निभाई जाती है, वैसे ही सदरबाजार के मंदिर में 12 साल पश्चात रथ का निर्माण किया जाता है। श्रीविग्रह को नहीं बदला जाता, केवल रथ का पुनर्निर्माण किया जाता है।
पुरी के समीप गांव से श्रृंगार सामग्री
पुरी मंदिर के समीप स्थित पिपली गांव से भगवान के श्रीविग्रह का श्रृंगार करने के लिए पोशाक एवं अन्य सामग्री मंगवाई जाती है। रथयात्रा से पहले मंदिर के पुजारी यह सामग्री लेकर आते हैं।
नीम-चंदन की प्रतिमा
200 साल पुराना मंदिर पहले छोटा सा था, जिसका जीर्णोद्धार 1930 में किया गया। मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भैया बलदाऊ और बहन देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं को चंदन-नीम मिश्रित लकड़ी से बनाया गया है, जो सैकड़ों वर्षों तक खराब नहीं होगी।
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के दौरान गायत्री नगर में जगन्नाथ मंदिर की आधारशिला रखी गई थी। 2003 में मंदिर का निर्माण पूरा। रथयात्रा से पूर्व राज्यपाल, मुख्यमंत्री पूजा करके प्रतिमाओं को सिर पर विराजित करके रथ तक लेकर आते हैं। यात्रा से पूर्व रथ के आगे स्वर्ण से निर्मित झाड़ू से मार्ग को बुहारने की रस्म निभाई जाती है। इसे छेरा-पहरा यानी रथ के आगे सोने से बनी झाड़ू से बुहारने की रस्म कहा जाता है।
अलग-अलग रथ पर विराजते हैं भाई-बहन
श्री जगन्नाथ मंदिर के संस्थापक पुरंदर मिश्रा बताते हैं कि पुरी धाम में जिस तरह तीन रथों पर भगवान जगन्नाथ, भैया बलदाऊ और बहन सुभद्रा को विराजित किया जाता है, उसी तर्ज पर गायत्री नगर स्थित मंदिर में भी तीन रथ पर भाई-बहन को विराजित करके यात्रा निकाली जाती है।
भ गवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदी घोष’, भैया बलदाऊ के रथ को ‘तालध्वज’ और बहन सुभद्रा के रथ को ‘देवदलन’ कहा जाता है। सबसे आगे बलदाऊ का रथ, मध्य में सुभद्रा का और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है।