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कांकेर : भानुप्रतापपुर उपचुनाव को सर्व आदिवासी समाज के उम्मीदवार ने बनाया त्रिकोणीय

कांकेर : भानुप्रतापपुर उपचुनाव को सर्व आदिवासी समाज के उम्मीदवार ने बनाया त्रिकोणीय

कांकेर। जिले के भानुप्रतापपुर उपचुनाव के निर्दलिय उम्मीदवार पूर्व आईपीएस अकबर राम कोर्राम पारंपरिक सियासी दलों से हटकर सर्व आदिवासी समाज की ओर से निर्दलिय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में हैं।

बस्तर पुलिस के डीआईजी पद से रिटायर हुए अकबर राम कोर्राम को आदिवासी पसंद कर रहे हैं। इन्हें जिताने के लिए गांव-गांव कसमें खाई जा रही हैं

कि लोग भाजपा और कांग्रेस का साथ न देकर इन्हें ही समर्थन देंगे, इसके बाद चुनाव सियासी तौर पर दिलचस्प हो गया है। इसके बाद यह कहना अनुचित नहीं होगा

कि भानूप्रतापपुर उपचुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष में फंस गया है। भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार को सर्व आदिवासी समाज के निर्दलीय उम्मीदवार अकबरराम कोर्राम कड़ी चुनौती दे रहे हैं।

ब्रह्मानंद नेताम

चुनाव प्रचार के थमने के बाद भी भानुप्रतापपुर विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं में गहरी खामोशी देखी जा सकती है। भानूप्रतापपुर विधानसभा के पिछले परिणामों पर गौर किया जाए

तो यह देखने को मिलता है कि यहां तीन बार मुख्य राष्ट्रीय पार्टियों को छोड़कर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहे हैं। इस रिकॉर्ड के हिसाब से आने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम यदि चौंकाने वाले होंगे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

वहीं कांग्रेस की ओर से दिवंगत विधायक स्वर्गीय मनोज मंडावी की पत्नी सावित्री मंडावी चुनावी मैदान में है, वहीं भाजपा की ओर से ब्रह्मानंद नेताम चुनावी मैदान ताल ठोक रहे हैं।

सावित्री मंडावी

दोनों ही राष्ट्रीय पार्टी अपने पूरे लाव लश्कर के साथ चुनाव प्रचार में जुटी हैं, बावजूद इसके सर्व आदिवासी समाज के निर्दलीय उम्मीदवार अकबरराम कोर्राम की मौजूदगी से दोनों ही राष्ट्रीय दल को बड़ा खतरा नजर आ रहा है।

आदिवासी समाज जिस तरह से निर्दलीय उम्मीदवार अकबरराम कोर्राम के पक्ष मेें प्रचार कर रहा है और भानुप्रतापपुर उपचुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। उससे यह कहना गलत नहीं होगा कि इस त्रिकोणीय संघर्ष में चौकाने वाले परिणाम आ सकते हैं।

उल्लेखनिय है कि 1962 में पहली बार भानुप्रतापपुर का विधानसभा क्षेत्र घोषित किया गया। पहले चुनाव में निर्दलीय रामप्रसाद पोटाई ने कांग्रेस के पाटला ठाकुर को हराया।

1967 के दूसरे चुनाव में प्रजा सोसलिस्ट पार्टी के जे हथोई जीते। 1972 में कांग्रेस के सत्यनारायण सिंह जीते। 1979 में जनता पार्टी के प्यारेलाल सुखलाल सिंह जीत गए।

1980 और 1985 के चुनाव में कांग्रेस के गंगा पोटाई की जीत हुई। 1990 के चुनाव में निर्दलीय झाड़ूराम रावटे ने गंगा पोटाई को हरा दिया। 1993 में भाजपा के देवलाल दुग्गा यहां से जीत गए।

1998 में कांग्रेस के मनोज मंडावी जीतकर अजीत जोगी सरकार में मंत्री रहे। 2003 में भाजपा के देवलाल दुग्गा फिर जीत गए। 2008 में भाजपा के ही ब्रम्हानंद नेताम यहां से विधायक बने। 2013 में कांग्रेस के मनोज मंडावी ने वापसी की, 2018 के चुनाव में भी उन्होंने जीत दर्ज की।

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