सुकमा : राजनैतिक लाभ के लिए कांग्रेस की आरक्षण वाली चाल दूर की कौड़ी है : मनीष कुंजाम
सुकमा। भाकपा के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने सोमवार को बयान जारी कर कहा कि 32 प्रतिशत आरक्षण एसटी कटौती के हाई कोर्ट के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण पर सुनवाई और फैसले होते रहते हैं।
छत्तीसगढ़ विधानसभा में पारित इस बिल के खिलाफ कोर्ट में जाने के लिए लोग तैयार हैं ऐसी खबरें हैं, वे लोग राज्यपाल के हस्ताक्षर का इंतजार कर रहे हैं।
फिर राज्यपाल के हस्ताक्षर से ही आरक्षण मिलने लगेगा ऐसा नहीं है, इस बिल पर जब तक राष्ट्रपति का हस्ताक्षर नहीं होगा तब तक इस बिल का कोई जीवन नहीं है। संविधान की नौवीं अनुसूची में डालने की बात कहा जा रहा है,
यह केंद्र की सरकार के क्षेत्र अधिकार में है और 09वीं अनुसूची भी सुरक्षित नहीं है, इसमें डालने वाले कानूनों का भी चैलेंज हो सकता है और होगा भी। ऐसे में भूपेश सरकार की यह आरक्षण वाली चाल दूर की कौड़ी है राजनीतिक फायदे की चाल हो सकता है।
हकीकत में फायदा उन समुदायों को अभी मिलने लगेगा अभी ऐसा सोचना ही बेवकूफी है। उन्होंने कहा कि पांचवी अनुसूची का पालन करते हुए एसटी के लिए पृथक से आरक्षण का कानून लाते तो निश्चित ही 32 प्रतिशत मिलने लगता, कांग्रेसी इस पर कुछ कहेंगे ना करेंगे।
मनीष कुंजाम ने कहा कि छत्तीसगढ़ में 76 प्रतिशत आरक्षण अभी राज्यपाल का हस्ताक्षर हुआ नहीं है, उन्होंने कानूनी सलाह लेने की बात कहा है।
इधर कांग्रेसी खुशियां मना रहे हैं और कह रहे हैं कि सीएम भूपेश और मंत्री लखमा के राज में ही संभव हो पाया है। लेकिन मुख्य प्रश्न है कि क्या यह संशोधन अधिनियम साकार हो पाएगा? इस पर सीधे बात करने के पहले ही ईडब्ल्यूएस की बात करते हैं।
इसके लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था केंद्र की मोदी सरकार ने किया था। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चली और इस पर एकमत से नहीं बहुमत से फैसला आया। फिर इसके बाद इसी कोर्ट में रिव्यू पिटिशन फाइल हुआ है, इस 10 प्रतिशत का क्या होगा अभी कहना मुश्किल है।
मनीष कुंजाम ने कहा कि सुकमा मंत्री कवासी लखमा का क्षेत्र है, यहां उनका पुत्र जिला पंचायत अध्यक्ष भी है, यहां कुछ ज्यादा ही उत्साह उल्लास कांग्रेसियों में हैं। वैसे कानूनी दांव पेंच अड़चनों और उनकी समस्त प्रक्रियाओं से हरीश या कवासी लखमा को क्या लेना-देना है।
एक तो उन्हें यहां सब समझ में आएगा नहीं, सबसे अव्वल तो यह है कि आदिवासियों को आखिर क्या मिला सब के साथ आरक्षण देने से लटका रहेगा, यही सबसे अधिक संभावनाएं हैं।