अंगारमोती में अंधविश्वासी परंपरा : संतान प्राप्ति की उम्मीद में जमीन पर लेटी महिलाओं पर चलना अनुचित, इस पर लगे रोक – डॉ. मिश्र
रायपुर : अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि धमतरी जिले के गंगरेल के पास अंगारमोती मंदिर में 10 से अधिक बैगाओं के दल द्वारा महिलाओं के ऊपर चलने की परंपरा अनुचित और अमानवीय है.
धार्मिक आस्था और अनुष्ठान की स्वतंत्रता तो सबको है, लेकिन संतानप्राप्ति के नाम पर महिलाओं के साथ ऐसे हानिकारक रिवाज और कुरीतियों को बंद होना चाहिए.
डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि उन्हें जानकारी मिली है कि धमतरी शहर से 14 किमी दूर गंगरेल के पास मां अंगारमोती में शुक्रवार को मड़ई मेला लगा. यहां 52 गांव के देव विग्रह मां अंगार मोती के दरबार में आए.
यहां की एक परंपरा है कि महिलाएं पेट के बल लेट जाती हैं और बैगा उनके ऊपर चलते हैं ताकि उन्हें संतान की प्राप्ति हो सके और महिलाएं इस भरोसे से लेटी रहती हैं, शायद इस प्रक्रिया से उन्हें सन्तान लाभ हो सकेगा.
इस बार 300 से अधिक महिलाएं मंदिर के सामने नीबू, नारियल और अन्य पूजा सामान लेकर बाल खोलकर पेट के बल लेटी रहीं. इसे परण कहा जाता है.
10 से ज्यादा बैगा अपने डांग-डोरी के साथ महिलाओं के ऊपर चलते हुए मां अंगार मोती के दरबार में पहुंचे. इसके बाद यहां बैगाओं ने डांग, मड़ई, त्रिशूल, संकल, कासड़ आदि के साथ परंपरागत रस्में निभाईं.
बैगाओं के सामने पेट के बल लेटती हैं महिलाएं
छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में गंगरेल बांध स्थित मां अंगारमोती के मंदिर में हर साल मडई के मौके पर हजारों लोगों की भीड़ जुटती है. निसंतान महिलाएं खासतौर पर इस दिन मंदिर पहुंचती हैं.
ध्वज और मडई लेकर जाते बैगाओं के सामने पेट के बल लेटकर महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए कामना करती हैं. इसी क्षेत्र में मां अंगारमोती का प्रसिद्ध मंदिर है.
यहां हर साल दिवाली के बाद पड़ने वाले प्रथम शुक्रवार को मेला मडई का आयोजन होता है. गंगरेल बांध के डूब क्षेत्र में आने वाले 52 गांव के देवी-देवताओं को लेकर वहां के बैगा हर साल मडई में पहुंचते हैं.
मड़ाई में निसंतान महिलाओं की लगती है भीड़
आस-पास के गांवों के आंगा देवताओं को लेकर भी बैगाओ की टोली पहुंचती है. यहां की मडई को देखने केआ लिए हजारों लोग दूर-दराज के इलाकों से आते हैं. मडई के दिन निसंतान महिलाएं बड़ी संख्या में यहां पहुंचती है.
28 अक्टूबर को मां अंगारमोती की मडई में 300 से ज्यादा निसंतान महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना लेकर पहुंची थीं. मड़ई, ध्वज और डांग लेकर चल रहे 11 से अधिक बैगाओं की टोली के सामने वे पेट के बल लेट गई.
बैगाओं की टोली इन महिलाओं के शरीर पर चलते हुए गुजरी. बताया जाता है कि प्राचीन मान्यता है कि इस तरह महिलाओं के लेटने और उनके ऊपर से बैगाओं के गुजरने से माता की कृपा मिलती है और निसंतान महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है.

इसको रोकने के लिए प्रशासन करें पहल
डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि सन्तान प्राप्ति के लिए किसी महिला के ऊपर यह विश्वास करके चलना कि उसे सन्तान लाभ होगा, पूरी तरह से ग़ैरतार्किक, अवैज्ञानिक एवं अंधविश्वास है.
ऐसे में महिलाओं को अंदरूनी चोटें भी लग सकती हैं. डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा सन्तान हीनता के लिए सिर्फ महिलाएं ही जिम्मेदार नहीं होती, पुरुष भी सन्तानहीनता के लिए जिम्मेदार होते है
इसलिए सिर्फ महिलाओं को जिम्मेदार समझ कर बैगाओं के पैरों तले लेटने का तरीका अनुचित है. आज इस वैज्ञानिक युग में निसंतान दम्पतियों के लिए उपचार के अनेक आधुनिक साधन उपलब्ध है, जिनका लाभ उन्हें दिलाया जाना चाहिए. जिसके लिए प्रशासन पहल करें.
अंधविश्वासी परंपरा पर लगे रोक
डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा महिलाओं के ऊपर चलने की इस गलत और अमानवीय परम्परा को बंद करने की जरूरत है. इसलिए मंदिर समिति के पदाधिकारियों, जिला कलेक्टर, महिला आयोग से चर्चा करेंगे और जनजागरण करेंगे.